Sunday, August 1, 2010

सृष्टीकर्ता

सृष्टीकर्ता ने एक दिन सोचा की धरती पर जाकर कम से कम अपनी सृष्टी को तो देखा जाये | धरती पर पहुचते ही सबसे पहले उनकी दृष्टी एक किसान की और गई | वह कुदाली लिए पहाड़ खोदने मे लगा था | सृष्टीकर्ता प्रयत्न करने पर भी अपनी हंसी रोक न पाए | उस इतने बड़े काम मे केवल एक व्यक्ति को लगा देख और आश्चर्य हुआ |
वह किसान के पास गए, उन्होंने कारण जानना चाहा तो उसका सीधा उत्तर था | महाराज मेरे साथ कैसा अन्याय है? इस पर्वत को अन्यत्र स्थान ही नहीं मिला बादल आते हैं, इससे टकराकर उस और वर्षा कर देते है और पर्वत के इस मेरे खेत है वह सूखे ही रहते हैं |
" क्या तुम इस विशाल पर्वत को हरा सकोगे? क्यों नहीं ? मे इसे हराकर ही मानूंगा वह मेरा दृढ संकल्प है | सृष्टीकर्ता आगे बढ़ गए उन्होंने अपने सामने पर्वत राज को याचना करते देखा | वह हाथ जोड़े गिडगिडा रहा था विधाता! इस संसार मे सिवाय आपके मेरी रक्षा कोई नहीं कर सकता | क्या तुम इतने कायर हो, जो की किसान के परिश्रम से डर रहे हो |
मेरे भयभीत होने के पीछे जो कारण है, क्या आपने अभी-अभी नहीं देखा था की किसान मे कितना आत्मविश्वास मे वहां से मुझे हटाकर ही मानेगा | अगर उसकी इच्छा इस जीवन मे पूरी नहीं हुई तो उसके छोड़े हुए काम को उसके पुत्र और पोत्र पूरा करेंगे और मुझे भूमितल करके ही चैन लेंगे आत्म विश्वास असंभव लगने वाले कार्यो को भी संभव बना देता है | पर्वतराज ने कहा |
आज मानवता कराह रही है - दानवता हंस रही है | समाज मे दुखों का अंत नजर नहीं आ रहा है | आज सूर्य की किरणेहर गर तक पहुँचने मे पूर्ण संभव नहीं है पर वनांचल मे दुखों का अन्धकार का साम्राज्य आज भी मौजूद है | समाज मे व्याप्त दुखों का एक पहाड़ खड़ा है | आपश्री के सहयोग, वरदहस्त एवं संरक्षण से यह संस्थान श्री उसी किसान की तरह दृढ संकल्प एवं आत्म विश्वास के साथ इस पहाड़ को गिराने मे लगा है | कार्य बहुत बाकी है अभी मात्र मंजिल का रास्ता मिला है मंजिल अभी दूर है | हमारा विश्वास प्रबल है, कदम इसी दिशा मे बढ़ रहे है, साथ एवं संबल आपका पुरजोर मिल रहा है तथापि आवश्यकता है अधिक हाथों की | हजारों मन से संकल्प उठने की |
जी हाँ, साथ आपश्री का इसी प्रकार मिलता रहेगा, अगर समाज मे फैली असमानता की खाई को जीन पर्यन्त लगे रहने के बाद भी हम पूरा नहीं कर पायेंगे तो जो आज बालगृह मे बच्चे शिक्षित हो रहे है, जो विधवाएं स्वावलम्बन प्रशिक्षण ले रही है, जो विकलांग ऑपरेशन के बढ़ खड़े होकर होकर चल रहे हैं वे इस कार्य को पूरा करेंगे | अगर इस हेतु पुनः जन्म भी लेने की आवश्यकता रही तो इसी कार्य हेतु जन्म दे, नहीं प्रार्थना प्रभु से निरंतर रहेगी |
प्रभु का कार्य है - प्रभु ही कर रहे है - हम सब तो हैं निमित्त मात्र |

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