Monday, October 18, 2010

Chanakya Quotes


A man is born alone and dies alone; and he experiences the good and bad consequences of his karma alone; and he goes alone to hell or the Supreme abode.
- Chanakya

A man is great by deeds, not by birth.
- Chanakya

A person should not be too honest. Straight trees are cut first and honest people are screwed first.
- Chanakya

As a single withered tree, if set aflame, causes a whole forest to burn, so does a rascal son destroy a whole family.
- Chanakya

As long as your body is healthy and under control and death is distant, try to save your soul; when death is immanent what can you do?
- Chanakya

As soon as the fear approaches near, attack and destroy it.
- Chanakya

Before you start some work, always ask yourself three questions - Why am I doing it, What the results might be and Will I be successful. Only when you think deeply and find satisfactory answers to these questions, go ahead.
- Chanakya

Books are as useful to a stupid person as a mirror is useful to a blind person.
- Chanakya

Do not be very upright in your dealings for you would see by going to the forest that straight trees are cut down while crooked ones are left standing.
- Chanakya

Do not reveal what you have thought upon doing, but by wise council keep it secret being determined to carry it into execution.
- Chanakya

Education is the best friend. An educated person is respected everywhere. Education beats the beauty and the youth.
- Chanakya

Even if a snake is not poisonous, it should pretend to be venomous.
- Chanakya

God is not present in idols. Your feelings are your god. The soul is your temple.
- Chanakya

He who is overly attached to his family members experiences fear and sorrow, for the root of all grief is attachment. Thus one should discard attachment to be happy.
- Chanakya

He who lives in our mind is near though he may actually be far away; but he who is not in our heart is far though he may really be nearby.
- Chanakya

If one has a good disposition, what other virtue is needed? If a man has fame, what is the value of other ornamentation?
- Chanakya

It is better to die than to preserve this life by incurring disgrace. The loss of life causes but a moment's grief, but disgrace brings grief every day of one's life.
- Chanakya

Never make friends with people who are above or below you in status. Such friendships will never give you any happiness.
- Chanakya

O wise man! Give your wealth only to the worthy and never to others. The water of the sea received by the clouds is always sweet.
- Chanakya

Once you start a working on something, don't be afraid of failure and don't abandon it. People who work sincerely are the happiest.
- Chanakya

One whose knowledge is confined to books and whose wealth is in the possession of others, can use neither his knowledge nor wealth when the need for them arises.
- Chanakya

Purity of speech, of the mind, of the senses, and of a compassionate heart are needed by one who desires to rise to the divine platform.
- Chanakya

Test a servant while in the discharge of his duty, a relative in difficulty, a friend in adversity, and a wife in misfortune.
- Chanakya

The biggest guru-mantra is: never share your secrets with anybody. It will destroy you.
- Chanakya

The earth is supported by the power of truth; it is the power of truth that makes the sun shine and the winds blow; indeed all things rest upon truth.
- Chanakya

The fragrance of flowers spreads only in the direction of the wind. But the goodness of a person spreads in all direction.
- Chanakya

The happiness and peace attained by those satisfied by the nectar of spiritual tranquillity is not attained by greedy persons restlessly moving here and there.
- Chanakya

The life of an uneducated man is as useless as the tail of a dog which neither covers its rear end, nor protects it from the bites of insects.
- Chanakya

The one excellent thing that can be learned from a lion is that whatever a man intends doing should be done by him with a whole-hearted and strenuous effort.
- Chanakya

The serpent, the king, the tiger, the stinging wasp, the small child, the dog owned by other people, and the fool: these seven ought not to be awakened from sleep.
- Chanakya

The wise man should restrain his senses like the crane and accomplish his purpose with due knowledge of his place, time and ability.
- Chanakya

The world's biggest power is the youth and beauty of a woman.
- Chanakya

There is no austerity equal to a balanced mind, and there is no happiness equal to contentment; there is no disease like covetousness, and no virtue like mercy.
- Chanakya

There is poison in the fang of the serpent, in the mouth of the fly and in the sting of a scorpion; but the wicked man is saturated with it.
- Chanakya

There is some self-interest behind every friendship. There is no friendship without self-interests. This is a bitter truth.
- Chanakya

Treat your kid like a darling for the first five years. For the next five years, scold them. By the time they turn sixteen, treat them like a friend. Your grown up children are your best friends.
- Chanakya

We should not fret for what is past, nor should we be anxious about the future; men of discernment deal only with the present moment.
- Chanakya

Whores don't live in company of poor men, citizens never support a weak company and birds don't build nests on a tree that doesn't bear fruits.
- Chanakya

Wednesday, September 22, 2010

प्राणी


प्राणीयों कि हिंसा किये बिना
मांस उपलब्ध नहीं हो सकता, और
प्राणी का वध करना सुखदाय नहीं अतः मांस त्याज्य है |
जिस व्यक्ति के दिल में प्राणीयों के प्रति प्रेम नहीं वह
परमात्मा का प्रेम नहीं प सकता |
उत्कृष्ट, मानवीय एवं रोगमुक्त आहार-शाकाहार
प्रसन्नता तो चंदन है दुसरे के माथे पर लगाइये,
आपकी अंगुलियां अपने आप महक उठेगी |
हमने जन प्राणीयों को काटा है मारा है,
खाया है या बलि दी है, उन सबकी बददुआओं से एक
दिन हम पर संकट का पहाड टूट पडेगा | यह एक अटल
सत्य है | अगर कामना लेकर परमात्मा के पास जाओगे तो
परमात्मा संसार है
और कामनाओं से मुक्त होकर संसार के पास जाओगे तो
संसार भी परमात्मा है |
विचार करें - जिन वस्तूओं को हम अपनी मानने है, वे
सदा हमारे साथ रहेगी क्या ?
रंगी को नारंगी कहे, अमूल्य माल को खोया |
चलते को गाडी कहे, देख कबीरा रोया ||
एक बार शरणागत होकर, जो कहता प्रभू ! मैं तेरा |
कर देता मैं अभय उसे, सब भूतों से यह व्रत मेरा ||
पर नारी छानी छुटी, पांच ढोर सुं खाय |
तन छीजे जोबन हरे, पंत पंचों में जाय |
जीवत खावे कालजो, मरयां नरक ले जाय |

Sunday, September 19, 2010

कविता

सम हाले वो होता, जो करूणा दिल में लाता |
पीडित और दीन अनाथी, दुखीयों को गले लगाता ||
दुखीयों को गले लगाता, दुख सहकर सुखी बनाता |
दांतो तले तृण दाब कर ये, गायें कह रही,
हम पशु तथा तुम हो मनुज, पार योग्य क्या तुमको यही ?
हमने तुम्हें मां कि तऱ्ह से दुध पीने क दिया |
देकर कसाई को हमें, तुमने हमारा वध किया |
जारी रहा क्रम यदि, यहां यो हि हमारे नाश का,
तो अस्त साम्झों, सूर्य भारत भाग्य के आकाश का |
जो तनिक हरियाली रही, वह भी न रहने पाएगी,
यह स्वर्ण भारत भूमि, बस मरघट यही बन जायेगी |
सर्व भूत में आत्मा, आत्मा में सब भूत
यह गुढार्थ जिन्हें विदित, उनका ज्ञान प्रभूत ||

Sunday, September 12, 2010

सिकन्दर (Alexander)




इतिहासज्ञ जिस व्यक्ती को सिकन्दर 'महान' के नाम से पुकारते है, उसके अंतिम संस्कार कि तैयारीया हो रही थी | काफी हुजुम उमड पडा था | जीते जी उसने काफी प्रभुत्व स्थापित किया था - अपनी महत्वाकांक्षा कि पूर्ती के लिये दुनिया मी एक बडे भू-भाग पार विजय कि थी | फिर भी उसके मन में यही रहता था कि काश ! मैं कुछ और जमीन जीत सकूं |

श्रध्दांजलि देने वालों मैं से एक अपने उदगार रोक नही पाया | कह ही दिया कि , है सिकन्दर महान, पृथ्वी के इतने बडे भाग के स्वामी बन कर भी आपकी चाह समाप्त नही हुई , अब सिर्फ दो गज जमीन ले कर आपको कैसा लगेगा !

यह बात सिर्फ सिकन्दर कि नही है | वह तो प्रतिक है | न्यूनाधिक रूप मैं यह बात हम सब पार लागू होती है , जाब हमारे १०० दिन पुरे होंगे तब हम क्या सोचेंगे ? उस समय जीवन कि उप्लाब्धीया, हानि लाभ, क्या खोया-क्या पाया आदी पार मनन चलेगा | क्या मकान बना लिया उसे ही उपलब्धी सामझेंगे ? या बच्चे बडे होकार अच्छे काम पार लाग गये अच्छी जगहो पर उनके शादी-ब्याह हो गए, इसे उपलब्धी मानेगे ? या फिर व्यापार का विस्तार दूर-दूर तक कर लिया इसे उल्लेखनीय बताएंगे ?

मृत्यू सामने खडी है और ये कह रहे है -"हे भगवान" मुझे जीवन का सिर्फ एक वर्ष और दे दे , धर्मशाला बनवा दुं | धन तो खूब है नही तो एक पाठशाला बनवा दुं एक वर्ष नही तो दो-चार महीने ही सही | एक प्याऊ लगवा दुं |

मृत्यू का अट्टहास सुनाई देता है -"जीवन के पेपर के तीन घंटे पुरे हुए | अब एक क्षण भी नही मिलेगा |" और सब कुछ खत्म!
आईये, जीवन मैं कोई ऐसी उपलब्धी हासिल करने का प्रयास करें जिस पर हम गर्व कर साकें |

आपका आपना,

कैलाश 'मानव
'

Sunday, September 5, 2010

व्यवहार

रियासत काल कि बात हैं | एक महारानी को एक दिन नदी-विहार कि सुझी | आदेश मिलने कि देर थी, तत्परता के साथ उपवन में व्यवस्था कि गई | महारानी ने जी भर कर विहार का आनंद लिया | दिन ढलने लागा ओर शीतल हवाएं चली तो महारानी को सर्दी अनुभव हुई , उन्होने सेविकाओ को अग्नि का प्रबंध करने का आदेश दिया सेविकाओ ने काफी खोज-बीन कि लेकीन सुखी लकडीयां नही मिली | उन्होने महारानी को अपनी असमर्थता बताई | महारानी ने आदेश दिया - "सामने जो झोपडिया दिख रही हैं , उन्ही को ईंधन के रूप में काम में लिया जाए " झोपडिया तोड-फोड दी गाई और महारानी के लिये आग तापने का प्रबंध हो गया |
दुसरे दिन झोपडी वालो ने महाराजा ने गंभीरता पूर्वक विचार किया | उन्होने स्वयं को उन गरीबो कि जगह रख कर देखा - उनकी वेदना का अनुभव किया | तब निर्णय दिया कि महारानी राजमहल छोडकर निकले , हाथ में कटोरा लेकर भिक्षा मांग कर धन एकत्र करे, उस धन से झोपडिया का पुनर्निर्माण कराए ; तभी पुनः राजमहल में प्रवेश करे |
अस्तु ! दुसरो कि वेदना का अनुभव करने के लिये हमें स्वयं को उसके स्थान पार खडा होना पडेगा | महापुरुष एक शाश्वत नियम बात गये हैं - 'दुसरों के साथ वही व्यवहार करो, जो तुम्हे अपने लिये पसंद हो ' ऐसे व्यवहार के लिये व्यक्ती को अपना 'स्व' छोडना पडेगा | जाब हम अपने सोच को इस दिशा में ले जाएंगे , तभी अपने कर्तव्य का सही निर्धारण कर पाएंगे | '

आपका आपना,

कैलाश 'मानव
'

Saturday, September 4, 2010

मुस्कान



मुस्कान कि कोई कीमत नही होती, मगर यह बहुत कुछ रचती हैं , यह पाने वाले को खुशहाल करती हैं , देणे वाले का कुछ घटता नही यह क्षणिक होता हैं लेकीन यह यादों में सदा के लिये रह सकती हैं | कोई इतना अमीर नही कि इसके बगैर काम चला ले, और कोई इतना गरीब नही कि इसके फायदो को पा सके यह घर मी खुशहाली लाती हैं , व्यापार में ख्याती बढ़ाती हैं और यह दोस्तो कि पहचान हैं |

यह थके हुओं के लिये आराम है , निराश लोगो के लिये रोशनी, उदास के लिये सुनहरी धूप, और हर मुश्कील के लिये कुदरत की सबसे अच्छी दवा | तब भी न तो भीख में , न खरीदने से न उधार मांगने से और चुराने से मिलती है , क्योंकी यह एक ऐसी चीज है जो जब तक किसी काम की नही, जब तक आप इसे किसी को दे न दें |

दिन-भर की भाग- दौड में कुछ परिचित हो सकते है कि इतने थके हों कि मुस्करा न सके | तो उन्हे अपनी हि मुस्कान दीजिए |
किसी को मुस्कान की उतनी जरुरत नही होती जितनी कि उसे , जो खुद किसी को अपनी मुस्कान न दे सके |

आपका आपना,

कैलाश 'मानव'

Friday, August 20, 2010

एक बार एक पिता पुत्र.........

एक बार एक पिता पुत्र अनेक व्याक्तियो के साथ तीर्थ यात्रा पार जा रहे थे | रात्री का समय था, आधी रात ढल चुकी थी, लेकीन उजाला नही हुआ था | चारो ओर एक निराली शांती थी | पिता का चित निर्मल ही | वे प्रार्थना कि तैयारी करने लगे | उनके मन मैं आया कि क्यो नही वे अपने पुत्र को भी जगा ले जिससे वह भी इस शान्त घडी मैं प्रार्थना कर सके | यह सोच कर उन्होने अपने बेटे को जगाया | बेटा युवा अवस्था मैं था | रात्री मैं उठने मैं उसे काठीनाई हुई फिर भी, पिता जी को जगते देखकर वह भी उठ बैठा | बेटे ने देखा कि सभी गहरी नींद मैं सो रहे है | पिता ने बेटे से कहा - आओ, प्रार्थना करे | कितना अच्छा सुहावना ओर उपयुक्त समय है |
बेटा चंचल चित्त का था | पिता के भावो कि गहराई को नही समज सका ओर कहने लगा - पिता जी ये सभी जो सो रहे है, कितने "पापी" है ? इन्हे भी प्रभू प्रार्थना कारणी चाहिये | पिता का मन उदासी से भर गया | उन्होने कहा बेटे, इस अद्वितीय क्षण मै भी तेरा मन परनिंदा मै लगा है तो जा तू भी सो जा | परनिंदा करणे कि अपेक्षा तो तेरा सो जाना ही उपयुक्त है |
जी हां, जो पार निन्दा में भागीदार होते हैं, जिनको परनिंदा मी मजा आता हैं वे लोग आनंद कि अनुभूती कर नही सकते | यही मजा मजबुरी मी बदलता हैं तो मन मसोसना पडता हैं | जो परनिंदा में लगे हैं हमारे विचारो में वे आईना देख रहे हैं | जी हां, दर्पण कभी झूठ नही बोलता हैं वह तो देखने वाले कि तस्वीर ही दिखाता हैं |
हम हम यदि परनिंदा बजाय दुसरो कि अच्छाई एवं उनके सदगुणो का बखान करना शुरू कर दे तो मजे के बजाय आनंद कि प्राप्ती होगी | जी हां, आनंद कभी समाप्त नही होता वह आनंद मिलेगा यदि हम अपने चश्मों का रंग बदलकर अच्छे कार्यो कि सराहना का स्वभाव बना दें | निन्दा कि आदत को गुणो का बखान कि आदत में बदल दें तो हम मानवता कि ओर उठेंगे | जिस प्रकार अपने स्वभाव से पानी उपर से नीचे को ओर जाता हैं, ठीक यदि हमें उपर उठना हैं तो पर निन्दा परित्योग कर अन्यो की अच्छाइयो का अनुसरण करना होगा |
आईये सेवा की मोटार हमारे मन मस्तिष्क पर लगादें , औश्र जहां भी सेवा एवं परोपकार के कार्य हो उनका अनुमोदन करे, महापुरुषो के चरित्र की चर्चा करे ओर भगवत कार्यो में हमारा मन लगावे | जहां भी प्रभू कार्य हो करने से न चुके, जो करना चाहे उन्हे प्रेरित कर करावे एवं जहां ऐसे कार्य हो रहे हो उनका उत्साह वर्धन करे, फिर देखिये आनंद आपको छोडेगा नही |

आपका आपना,

कैलाश 'मानव'

Wednesday, August 18, 2010

चकाचौध और भौतिक युग



बात है आज के इस चकाचौध करने वाले भौतिक युग कि, जिसे हम जीवन मे कही न कही, किसी न किसी रूप मैं देख चुके है या देख रहे है ..... वर्षो से घर के कोने मैं एक वाद्य यंत्र रखा था | घर के लोग पिढीयो से उसे बजाना हि भूल गये थे | उसकी वजह से अनावश्यक जगह भी घिरती | घर के लोगो ने उठा कर उसे बाहर फेंक दिया | वे फेंक कर लौट हि रहे थे कि रास्ते पर चलते फकीर ने उस वाद्य यंत्र को उठा लिया ओर लगा उसे बाजाने | वह उसे बजाने में पारंगत था, अतः बडी मधुर धुने निकलने लगा |
जिन्होने वाद्य यंत्र को फेका था, वे भी उसकी सुरीली मधुर धुने सुनकर ठहर गये, ओर लौटकर फकीर से वाद्य यंत्र मांगने लगे | फकीर से वाद्य यंत्र मांगने लगे | फकीर ने कहा कि ये तो कुडेदान से मिला ही मुझे | फेकने वालो ने कहा यह हमने हि फेंका था यह हमारा है एवं हमारे परिवार कि पिढीयो कि धरोहर है, फकीर सुनकर खिलखीला उठा ओर पुछा यदि ये आपका है तो फिर क्यो फेंका था इसे कुडेदान मैं ? आप यदि वास्तव मैं इसके मालिक होते तो बजाते इसे वाद्य तो बजाने के लिये हि होता है |
जी हां हमारा जीवन भी इस वाद्य यंत्र है जीससे हम जीवन को मधुर धूने निकाल सकते है, ओर आनंद ले सकते है, सुख का | क्या हम भौतिकता के पीछे भागकर कही मात्र लक्ष्मी बटोरने को हि जीवन नाही मान बैठे है ? क्या किसी अपरिचित बिमार को देखकर कभी हमारे हृदय मैं करुणा उमडी है ? क्या कभी हम अपने पडोसी के दु:ख से दु:खी हुए है ? क्या कभी कडाके कि सर्दी मैं मात्र एक ही चद्दर ओढ्कर फुटपाथ पर रात बिताने वाले बेसहारे कि सर्दी महसूस कि है ? क्या हमने किसी अनाथ बच्चे को दिया है कोई रिश्ता ? यदि इन सब प्रश्नो का उत्तर ना मैं मिल रहा है तो हमारी भी वही हालत है जो उस परिवार कि थी जिसने वाद्य यंत्र को कुडेदान मैं फेंका |
सुबह का भुला हुआ शाम को घर लौट आता है तो उस भुला नही कहते है | जिस मनुष्य योनी के लिये देवता तक लालयित रहते है वह योनी परमात्मा ने हमे दी है कुछ जीवन को सत्कर्मो - सेवाकार्यो मैं लगाये एवं जिस आनंद कि लिये यह जीवन मिला है उस आनंद कि करे अनुभूती |

आपका आपना,

कैलाश 'मानव'

Friday, August 6, 2010

Narayan Seva Sansthan : A Brief Introduction

Established in 1985 Narayan Sewa Sansthan is a charitable organization having its office at Udaipur, Rajasthan and is rendering philanthropic services in the field of treatment and rehabilitation of polio affected persons of the society at large, without any discrimination on the ground of religion, region, caste, sex etc. At present it has been running ten prestigious hospitals for polio patients and a big international hospital for treatment of disabled by birth in Udaipur where disable persons from all corner of the world are bieng treated free of cost.

The organization has engaged itself in different educational, social and medical services for the poor as well as the needy, especially from the tribal belt. It is maintaining an orphan children hostel and a residential school for the blind, deaf-dumb and mentally retarded children. In order to make them self dependant Sansthan is providing training of sewing, carpentry, bamboo work etc. and also has vocational training centers providing courses on computer servicing, T.V. / V.C.R. repairing etc.

The Sansthan has frequently been organizing service camps to distribute food grains, medicines and basic utility items to poor tribals, pulse polio drive, environmental awareness camps, distribution of aids & appliance as calipers, crutches, tricycle & wheelchair free of cost etc. Besides these it also arranges “Parichay Sammelan” (Introduction Ceremony) for the disabled boys and girls and thereafter organizes and arranges a ceremony to tie their notes and get them married.

Wednesday, August 4, 2010

एक व्यक्ति

एक व्यक्ति अपने चार बच्चो को अनाथ छोड़कर रात्री मे घर से भाग निकला, आत्म कल्याण के लिए | किसी संत के पास जाकर वह भगवत प्राप्ति का उपाय पूछने लगा | उस व्यक्ति ने अपने त्याग की कहानी सुनाते हुए य कहा -
" मेरी पत्नी उस समय सो रही थी, एकाएक बच्चा चीखा, तो मुझे लगा - अब पत्नी जग पड़ेगी और मेरा घर से निकलना कठिन हो जायेगा, पर पत्नी ने बच्चे को छाती से लगाया, और बच्चा चुप हो गया | मे चुपचाप निकल आया | महात्मन | अब संसार की मोह-माया मे फंसना नहीं चाहता |"

साधू बोले - " मुर्ख ! दो भगवान तो तेरे घर मे ही बैठे है, जिन्हे तू छोड़ आया | जा जब तक तू उनकी सेवा नहीं करेगा, तब तक तेरा उद्धार नहीं होगा | पहले परिवार को संभाल, अपने कर्तव्यों को पूरा कर, फिर सोचना की पारिवारिक दायित्वों को निवाहते हुए तेरा आत्म कल्याण का लक्ष्य पूरा हुवा या नहीं ? अध्यात्म भगोड़ो का नहीं शूरवीरों का साथ देता है | परिवार मे रहते हुए भी, तेरी साधना पूरी होती रह सकती है | त्याग करना ही है , तो अपने सुखों एवं सुविधओं का कर !

यदि तो अपने पास जो धन लक्ष्मी सेवा के साधन और सदभावों के विचार असहायों दिन-दुखियों और गरीबों के लिए बांट देगा, तो स्वत: कल्याण के निकट पहुँच जायेगा | महात्मा का दिया हुआ मूल मंत्र उस व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य बन गया और मानव के रूप मे महामानव बनकर जन-जन का चहेता बन गया |

भारतीय संस्कृति मे समस्त पृथ्वी को अपने परिवार के रूप मे माना गया है, और जी हाँ हम तो पुनर्जन्म को भी मानते है? और यदि हाँ तो इस बात को नहीं नकारा जा सकता की जगत के प्राणियों से हमारा कोई रिश्ता नहीं | कोई न कोई किसी न किसी जन्म मे तो हमारा संबंधी रहा होगा, यही मानकर भी सेवा को धारण कर सकते हैं हम | यदि हमे इस बात का एह्साह हो जाता है की हम जो दवाई काम मे ले रहे है उसकी एक्सपाईरी तारीख नजदीक आ रही है तो तत्काल उसका सदुपयोग का खत्म कर देते हैं | हमारा जीवन भी एक औषधि है दर्दियों के लिए जिसकी एक्सपायर दिनांक निश्चित तो हो पर अघौषित इससे पहले जीवन रूपी औषधि एक्सपायर हो जावे हमें अपने जीवन को लगा देना चाहिए दिन, दुखी:, असहायों, विकलांगो और अभावग्रस्तों की सेवा मे |

Sunday, August 1, 2010

सृष्टीकर्ता

सृष्टीकर्ता ने एक दिन सोचा की धरती पर जाकर कम से कम अपनी सृष्टी को तो देखा जाये | धरती पर पहुचते ही सबसे पहले उनकी दृष्टी एक किसान की और गई | वह कुदाली लिए पहाड़ खोदने मे लगा था | सृष्टीकर्ता प्रयत्न करने पर भी अपनी हंसी रोक न पाए | उस इतने बड़े काम मे केवल एक व्यक्ति को लगा देख और आश्चर्य हुआ |
वह किसान के पास गए, उन्होंने कारण जानना चाहा तो उसका सीधा उत्तर था | महाराज मेरे साथ कैसा अन्याय है? इस पर्वत को अन्यत्र स्थान ही नहीं मिला बादल आते हैं, इससे टकराकर उस और वर्षा कर देते है और पर्वत के इस मेरे खेत है वह सूखे ही रहते हैं |
" क्या तुम इस विशाल पर्वत को हरा सकोगे? क्यों नहीं ? मे इसे हराकर ही मानूंगा वह मेरा दृढ संकल्प है | सृष्टीकर्ता आगे बढ़ गए उन्होंने अपने सामने पर्वत राज को याचना करते देखा | वह हाथ जोड़े गिडगिडा रहा था विधाता! इस संसार मे सिवाय आपके मेरी रक्षा कोई नहीं कर सकता | क्या तुम इतने कायर हो, जो की किसान के परिश्रम से डर रहे हो |
मेरे भयभीत होने के पीछे जो कारण है, क्या आपने अभी-अभी नहीं देखा था की किसान मे कितना आत्मविश्वास मे वहां से मुझे हटाकर ही मानेगा | अगर उसकी इच्छा इस जीवन मे पूरी नहीं हुई तो उसके छोड़े हुए काम को उसके पुत्र और पोत्र पूरा करेंगे और मुझे भूमितल करके ही चैन लेंगे आत्म विश्वास असंभव लगने वाले कार्यो को भी संभव बना देता है | पर्वतराज ने कहा |
आज मानवता कराह रही है - दानवता हंस रही है | समाज मे दुखों का अंत नजर नहीं आ रहा है | आज सूर्य की किरणेहर गर तक पहुँचने मे पूर्ण संभव नहीं है पर वनांचल मे दुखों का अन्धकार का साम्राज्य आज भी मौजूद है | समाज मे व्याप्त दुखों का एक पहाड़ खड़ा है | आपश्री के सहयोग, वरदहस्त एवं संरक्षण से यह संस्थान श्री उसी किसान की तरह दृढ संकल्प एवं आत्म विश्वास के साथ इस पहाड़ को गिराने मे लगा है | कार्य बहुत बाकी है अभी मात्र मंजिल का रास्ता मिला है मंजिल अभी दूर है | हमारा विश्वास प्रबल है, कदम इसी दिशा मे बढ़ रहे है, साथ एवं संबल आपका पुरजोर मिल रहा है तथापि आवश्यकता है अधिक हाथों की | हजारों मन से संकल्प उठने की |
जी हाँ, साथ आपश्री का इसी प्रकार मिलता रहेगा, अगर समाज मे फैली असमानता की खाई को जीन पर्यन्त लगे रहने के बाद भी हम पूरा नहीं कर पायेंगे तो जो आज बालगृह मे बच्चे शिक्षित हो रहे है, जो विधवाएं स्वावलम्बन प्रशिक्षण ले रही है, जो विकलांग ऑपरेशन के बढ़ खड़े होकर होकर चल रहे हैं वे इस कार्य को पूरा करेंगे | अगर इस हेतु पुनः जन्म भी लेने की आवश्यकता रही तो इसी कार्य हेतु जन्म दे, नहीं प्रार्थना प्रभु से निरंतर रहेगी |
प्रभु का कार्य है - प्रभु ही कर रहे है - हम सब तो हैं निमित्त मात्र |

Friday, July 30, 2010

मानवता एवं सेवा

भगवान महावीर स्वामी घोर तपस्या कर रहे थे | निकटवर्ती जंगल के ग्वाले उन्हे समाधिस्थ देखकर उनका उपहास किया करते , उन्हे तंग भी करते थे | इन व्यवधानों की उन्होने कभी भी चिंता नहीं की थी | तपस्या मे विघ्न डालने की बात पास के श्रावको को मिली | एक धनिक श्रद्धालु महावीर के पास आये और प्रार्थना करने लगे " महाराज आपको दुष्ट लोग व्यर्थ मे कस्ट दे रहे है , हमारी इच्छा है की हम आपके लिए एक भवन का निर्माण कर वहां सुरक्षा का प्रबंध भी कर दें जिससे आपकी साधना अबाध रूप चल सके |"

महावीर स्वामी शान्त चित्त से यह सब सुनते रहे, और बोले "ऐसा न कहे तात | ये तो अपने है, बच्चे प्यार से भी तो मुहँ नोचते हैं | माता-पिता क्या इसी बात से उन्हे गोद मे लेने से इंकार कर देते हैं ? आपका धन यहाँ मेरे लिए भवन बनाने मे ही नहीं, वरन निराश्रितों की सेवा में काम आना चाहिए |

धनिकों ने जब यह सुना तो वे अवाक् खड़े रह गए, उन्हे मुह से केवल इतना ही निकला, यही है सच्ची महानता, जो आज देखने को मिली | ग्वालो ने यह सब वृतांत सुना तो वे ग्लानी से भर उठे, उनके मन मे करुणा का अंकुरण हो गया |

आज संतो, महामुनियों से हम भी कई इसी जीवन बदलने वालो बातें रोज सुनते हैं | धन्य हैं वे संत जो समाज के कल्याण के लिए वस्त्र, यातायात के साधन, अहं, मान, अपमान सभी छोड़कर हमारी प्रेरणा बने हुए हैं | नित्य त्याग, सेवा एवं प्रेम का संदेश हमे देते हैं | क्या हमारा धन इसे लोक हित के कार्यो के लिए निकला है? क्या हमने अपनी धन रूपी लक्ष्मी किसी अनाथ की आवश्यकता मे लगे है? क्या हमने कभी दिलवाई है - किसी गरीब को दवा?

यही जीवन का असली मार्ग है - मान्यवर | चलते रहिये इसी पथ पर, जहाँ हमारे पथ प्रेरक दधिची, भामाशाह एवं कर्ण जैसे महादानी चले | मंजिल की रह यही है | आवश्यकता है मंजिल तक पहुँचने के लिए अपनी गति को रोज करने की जिस प्रकार से समाज मे दरिद्रता, आपाधापी व असमानता बढ़ रही है उसके दुगुने अनुपात मे सेवा, त्याग, प्रेम, आत्मीयता, उदारता, एवं स्नेहिलता की आवश्यकता हैं |

आपका आपना,

कैलाश 'मानव'

Thursday, July 29, 2010

Online Presence on Facebook, Orkut & Twitter




Dear Friends,

It feels great to be connected with you all online on websites like Twitter, Orkut and Facebook. I thank all of you who have added me with your profiles. This medium will help me tell you more about the activities of your Sansthan. I am really excited to see here that more and more youngsters are appreciating the activities of Narayan Seva Sansthan.

Since the inception of Narayan Seva Sansthan in 1985, with the contribution of all so many humble people the sansthan has successfully done more than 95000 polio operations. Our efforts and dedication in serving the mankind in all possible ways will carry on like this for ever.

I once again thank you for being a part of the Sansthan in some way or the other. Without your blessings the sansthan would not have traveled this path. Please spread the word about the sansthan if you find anyone in need of help from us.


जय मानव जाती, जय नारायण सेवा !

Your's Truly,

Dr. Kailash 'Manav'

Tuesday, July 27, 2010

सेवा क्यों?



सेवा का उद्दश्य क्या है? दीन - दरिद्र पीड़ित मानव समाज व देश की सेवा किसलिए? सेवा के द्वारा तुम्हारा ह्रदय शुद्ध होता है, अहम् भाव, घ्राणा, उच्चता की भावना एवं बुरी भावनाओ का नाश होता है तथा नम्रता, शुद्दता, प्रेम, सहानभूति तथा दया जैसे गुणों का विकास होता है| सेवा से स्वार्थ भावना मिटती है - द्वैत भावना कम होती है| जीवन के प्रति दृष्टीकोण विशाल एवं उदार होता है, एकता का भाव होता है परिणाम स्वरुप आत्मा का ज्ञान होने लगता है, एक में सब और सब में एक की अनुभूति होने लगती है - तभी असीम सुख प्राप्त होता है |

- स्वामी विवेकानंद

आत्म - वंचना से दूर, सत्य के निकट रहे

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Monday, July 26, 2010

कर्म का भाव

कर्म विज्ञानं के अनुसार कार्य यदि पवित्र भाव से न किया गया तो उसमे सरसता नहीं आती | सरसता हेतु प्रतेयेक कार्य पवित्र भाव से करना अनिवार्य है |

जिसके ह्रदय में यह निष्ठां द्रद्द हो गयी की 'मेरा जीवन मुझ आकेले का नहीं है बल्कि सबके लिए है" तो समझना मानवता जाग उठी, इस मानवता का जिस समाज पद्दति से विकास हो उस समाज रचना की हमें जरूरत है| महा प्रयत्न में भी हमें वह निर्मित करनी चाहिए |

आपका आपना
कैलाश 'मानव'

Padam Shri Dr. Kailash 'Manav': आपनो से आपनी बातें

Padam Shri Dr. Kailash 'Manav': आपनो से आपनी बातें: "व्यवस्था घर की सुन्दरता है, संतोष घर की बरकत है, अतिथि घर की शान है, धर्मशीलता घर का कलश है |"

आपनो से आपनी बातें

व्यवस्था घर की सुन्दरता है, संतोष घर की बरकत है, अतिथि घर की शान है, धर्मशीलता घर का कलश है |