Wednesday, August 18, 2010

चकाचौध और भौतिक युग



बात है आज के इस चकाचौध करने वाले भौतिक युग कि, जिसे हम जीवन मे कही न कही, किसी न किसी रूप मैं देख चुके है या देख रहे है ..... वर्षो से घर के कोने मैं एक वाद्य यंत्र रखा था | घर के लोग पिढीयो से उसे बजाना हि भूल गये थे | उसकी वजह से अनावश्यक जगह भी घिरती | घर के लोगो ने उठा कर उसे बाहर फेंक दिया | वे फेंक कर लौट हि रहे थे कि रास्ते पर चलते फकीर ने उस वाद्य यंत्र को उठा लिया ओर लगा उसे बाजाने | वह उसे बजाने में पारंगत था, अतः बडी मधुर धुने निकलने लगा |
जिन्होने वाद्य यंत्र को फेका था, वे भी उसकी सुरीली मधुर धुने सुनकर ठहर गये, ओर लौटकर फकीर से वाद्य यंत्र मांगने लगे | फकीर से वाद्य यंत्र मांगने लगे | फकीर ने कहा कि ये तो कुडेदान से मिला ही मुझे | फेकने वालो ने कहा यह हमने हि फेंका था यह हमारा है एवं हमारे परिवार कि पिढीयो कि धरोहर है, फकीर सुनकर खिलखीला उठा ओर पुछा यदि ये आपका है तो फिर क्यो फेंका था इसे कुडेदान मैं ? आप यदि वास्तव मैं इसके मालिक होते तो बजाते इसे वाद्य तो बजाने के लिये हि होता है |
जी हां हमारा जीवन भी इस वाद्य यंत्र है जीससे हम जीवन को मधुर धूने निकाल सकते है, ओर आनंद ले सकते है, सुख का | क्या हम भौतिकता के पीछे भागकर कही मात्र लक्ष्मी बटोरने को हि जीवन नाही मान बैठे है ? क्या किसी अपरिचित बिमार को देखकर कभी हमारे हृदय मैं करुणा उमडी है ? क्या कभी हम अपने पडोसी के दु:ख से दु:खी हुए है ? क्या कभी कडाके कि सर्दी मैं मात्र एक ही चद्दर ओढ्कर फुटपाथ पर रात बिताने वाले बेसहारे कि सर्दी महसूस कि है ? क्या हमने किसी अनाथ बच्चे को दिया है कोई रिश्ता ? यदि इन सब प्रश्नो का उत्तर ना मैं मिल रहा है तो हमारी भी वही हालत है जो उस परिवार कि थी जिसने वाद्य यंत्र को कुडेदान मैं फेंका |
सुबह का भुला हुआ शाम को घर लौट आता है तो उस भुला नही कहते है | जिस मनुष्य योनी के लिये देवता तक लालयित रहते है वह योनी परमात्मा ने हमे दी है कुछ जीवन को सत्कर्मो - सेवाकार्यो मैं लगाये एवं जिस आनंद कि लिये यह जीवन मिला है उस आनंद कि करे अनुभूती |

आपका आपना,

कैलाश 'मानव'

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