Wednesday, August 4, 2010

एक व्यक्ति

एक व्यक्ति अपने चार बच्चो को अनाथ छोड़कर रात्री मे घर से भाग निकला, आत्म कल्याण के लिए | किसी संत के पास जाकर वह भगवत प्राप्ति का उपाय पूछने लगा | उस व्यक्ति ने अपने त्याग की कहानी सुनाते हुए य कहा -
" मेरी पत्नी उस समय सो रही थी, एकाएक बच्चा चीखा, तो मुझे लगा - अब पत्नी जग पड़ेगी और मेरा घर से निकलना कठिन हो जायेगा, पर पत्नी ने बच्चे को छाती से लगाया, और बच्चा चुप हो गया | मे चुपचाप निकल आया | महात्मन | अब संसार की मोह-माया मे फंसना नहीं चाहता |"

साधू बोले - " मुर्ख ! दो भगवान तो तेरे घर मे ही बैठे है, जिन्हे तू छोड़ आया | जा जब तक तू उनकी सेवा नहीं करेगा, तब तक तेरा उद्धार नहीं होगा | पहले परिवार को संभाल, अपने कर्तव्यों को पूरा कर, फिर सोचना की पारिवारिक दायित्वों को निवाहते हुए तेरा आत्म कल्याण का लक्ष्य पूरा हुवा या नहीं ? अध्यात्म भगोड़ो का नहीं शूरवीरों का साथ देता है | परिवार मे रहते हुए भी, तेरी साधना पूरी होती रह सकती है | त्याग करना ही है , तो अपने सुखों एवं सुविधओं का कर !

यदि तो अपने पास जो धन लक्ष्मी सेवा के साधन और सदभावों के विचार असहायों दिन-दुखियों और गरीबों के लिए बांट देगा, तो स्वत: कल्याण के निकट पहुँच जायेगा | महात्मा का दिया हुआ मूल मंत्र उस व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य बन गया और मानव के रूप मे महामानव बनकर जन-जन का चहेता बन गया |

भारतीय संस्कृति मे समस्त पृथ्वी को अपने परिवार के रूप मे माना गया है, और जी हाँ हम तो पुनर्जन्म को भी मानते है? और यदि हाँ तो इस बात को नहीं नकारा जा सकता की जगत के प्राणियों से हमारा कोई रिश्ता नहीं | कोई न कोई किसी न किसी जन्म मे तो हमारा संबंधी रहा होगा, यही मानकर भी सेवा को धारण कर सकते हैं हम | यदि हमे इस बात का एह्साह हो जाता है की हम जो दवाई काम मे ले रहे है उसकी एक्सपाईरी तारीख नजदीक आ रही है तो तत्काल उसका सदुपयोग का खत्म कर देते हैं | हमारा जीवन भी एक औषधि है दर्दियों के लिए जिसकी एक्सपायर दिनांक निश्चित तो हो पर अघौषित इससे पहले जीवन रूपी औषधि एक्सपायर हो जावे हमें अपने जीवन को लगा देना चाहिए दिन, दुखी:, असहायों, विकलांगो और अभावग्रस्तों की सेवा मे |

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