Friday, July 30, 2010

मानवता एवं सेवा

भगवान महावीर स्वामी घोर तपस्या कर रहे थे | निकटवर्ती जंगल के ग्वाले उन्हे समाधिस्थ देखकर उनका उपहास किया करते , उन्हे तंग भी करते थे | इन व्यवधानों की उन्होने कभी भी चिंता नहीं की थी | तपस्या मे विघ्न डालने की बात पास के श्रावको को मिली | एक धनिक श्रद्धालु महावीर के पास आये और प्रार्थना करने लगे " महाराज आपको दुष्ट लोग व्यर्थ मे कस्ट दे रहे है , हमारी इच्छा है की हम आपके लिए एक भवन का निर्माण कर वहां सुरक्षा का प्रबंध भी कर दें जिससे आपकी साधना अबाध रूप चल सके |"

महावीर स्वामी शान्त चित्त से यह सब सुनते रहे, और बोले "ऐसा न कहे तात | ये तो अपने है, बच्चे प्यार से भी तो मुहँ नोचते हैं | माता-पिता क्या इसी बात से उन्हे गोद मे लेने से इंकार कर देते हैं ? आपका धन यहाँ मेरे लिए भवन बनाने मे ही नहीं, वरन निराश्रितों की सेवा में काम आना चाहिए |

धनिकों ने जब यह सुना तो वे अवाक् खड़े रह गए, उन्हे मुह से केवल इतना ही निकला, यही है सच्ची महानता, जो आज देखने को मिली | ग्वालो ने यह सब वृतांत सुना तो वे ग्लानी से भर उठे, उनके मन मे करुणा का अंकुरण हो गया |

आज संतो, महामुनियों से हम भी कई इसी जीवन बदलने वालो बातें रोज सुनते हैं | धन्य हैं वे संत जो समाज के कल्याण के लिए वस्त्र, यातायात के साधन, अहं, मान, अपमान सभी छोड़कर हमारी प्रेरणा बने हुए हैं | नित्य त्याग, सेवा एवं प्रेम का संदेश हमे देते हैं | क्या हमारा धन इसे लोक हित के कार्यो के लिए निकला है? क्या हमने अपनी धन रूपी लक्ष्मी किसी अनाथ की आवश्यकता मे लगे है? क्या हमने कभी दिलवाई है - किसी गरीब को दवा?

यही जीवन का असली मार्ग है - मान्यवर | चलते रहिये इसी पथ पर, जहाँ हमारे पथ प्रेरक दधिची, भामाशाह एवं कर्ण जैसे महादानी चले | मंजिल की रह यही है | आवश्यकता है मंजिल तक पहुँचने के लिए अपनी गति को रोज करने की जिस प्रकार से समाज मे दरिद्रता, आपाधापी व असमानता बढ़ रही है उसके दुगुने अनुपात मे सेवा, त्याग, प्रेम, आत्मीयता, उदारता, एवं स्नेहिलता की आवश्यकता हैं |

आपका आपना,

कैलाश 'मानव'

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