This NGO is established in 1985, since then it is working for poor, disabled and needy people not only from India but also foreign countries. Help these people and support us. Your contribution is always appreciated. Your little share can bring happiness in someones life.
Monday, October 18, 2010
Chanakya Quotes
Wednesday, September 22, 2010
प्राणी
Sunday, September 19, 2010
कविता
Sunday, September 12, 2010
सिकन्दर (Alexander)
श्रध्दांजलि देने वालों मैं से एक अपने उदगार रोक नही पाया | कह ही दिया कि , है सिकन्दर महान, पृथ्वी के इतने बडे भाग के स्वामी बन कर भी आपकी चाह समाप्त नही हुई , अब सिर्फ दो गज जमीन ले कर आपको कैसा लगेगा !
मृत्यू का अट्टहास सुनाई देता है -"जीवन के पेपर के तीन घंटे पुरे हुए | अब एक क्षण भी नही मिलेगा |" और सब कुछ खत्म!
आईये, जीवन मैं कोई ऐसी उपलब्धी हासिल करने का प्रयास करें जिस पर हम गर्व कर साकें |
कैलाश 'मानव'
Sunday, September 5, 2010
व्यवहार
दुसरे दिन झोपडी वालो ने महाराजा ने गंभीरता पूर्वक विचार किया | उन्होने स्वयं को उन गरीबो कि जगह रख कर देखा - उनकी वेदना का अनुभव किया | तब निर्णय दिया कि महारानी राजमहल छोडकर निकले , हाथ में कटोरा लेकर भिक्षा मांग कर धन एकत्र करे, उस धन से झोपडिया का पुनर्निर्माण कराए ; तभी पुनः राजमहल में प्रवेश करे |
अस्तु ! दुसरो कि वेदना का अनुभव करने के लिये हमें स्वयं को उसके स्थान पार खडा होना पडेगा | महापुरुष एक शाश्वत नियम बात गये हैं - 'दुसरों के साथ वही व्यवहार करो, जो तुम्हे अपने लिये पसंद हो ' ऐसे व्यवहार के लिये व्यक्ती को अपना 'स्व' छोडना पडेगा | जाब हम अपने सोच को इस दिशा में ले जाएंगे , तभी अपने कर्तव्य का सही निर्धारण कर पाएंगे | '
कैलाश 'मानव'
Saturday, September 4, 2010
मुस्कान
दिन-भर की भाग- दौड में कुछ परिचित हो सकते है कि इतने थके हों कि मुस्करा न सके | तो उन्हे अपनी हि मुस्कान दीजिए |
किसी को मुस्कान की उतनी जरुरत नही होती जितनी कि उसे , जो खुद किसी को अपनी मुस्कान न दे सके |
कैलाश 'मानव'
Friday, August 20, 2010
एक बार एक पिता पुत्र.........
बेटा चंचल चित्त का था | पिता के भावो कि गहराई को नही समज सका ओर कहने लगा - पिता जी ये सभी जो सो रहे है, कितने "पापी" है ? इन्हे भी प्रभू प्रार्थना कारणी चाहिये | पिता का मन उदासी से भर गया | उन्होने कहा बेटे, इस अद्वितीय क्षण मै भी तेरा मन परनिंदा मै लगा है तो जा तू भी सो जा | परनिंदा करणे कि अपेक्षा तो तेरा सो जाना ही उपयुक्त है |
जी हां, जो पार निन्दा में भागीदार होते हैं, जिनको परनिंदा मी मजा आता हैं वे लोग आनंद कि अनुभूती कर नही सकते | यही मजा मजबुरी मी बदलता हैं तो मन मसोसना पडता हैं | जो परनिंदा में लगे हैं हमारे विचारो में वे आईना देख रहे हैं | जी हां, दर्पण कभी झूठ नही बोलता हैं वह तो देखने वाले कि तस्वीर ही दिखाता हैं |
हम हम यदि परनिंदा बजाय दुसरो कि अच्छाई एवं उनके सदगुणो का बखान करना शुरू कर दे तो मजे के बजाय आनंद कि प्राप्ती होगी | जी हां, आनंद कभी समाप्त नही होता वह आनंद मिलेगा यदि हम अपने चश्मों का रंग बदलकर अच्छे कार्यो कि सराहना का स्वभाव बना दें | निन्दा कि आदत को गुणो का बखान कि आदत में बदल दें तो हम मानवता कि ओर उठेंगे | जिस प्रकार अपने स्वभाव से पानी उपर से नीचे को ओर जाता हैं, ठीक यदि हमें उपर उठना हैं तो पर निन्दा परित्योग कर अन्यो की अच्छाइयो का अनुसरण करना होगा |
आईये सेवा की मोटार हमारे मन मस्तिष्क पर लगादें , औश्र जहां भी सेवा एवं परोपकार के कार्य हो उनका अनुमोदन करे, महापुरुषो के चरित्र की चर्चा करे ओर भगवत कार्यो में हमारा मन लगावे | जहां भी प्रभू कार्य हो करने से न चुके, जो करना चाहे उन्हे प्रेरित कर करावे एवं जहां ऐसे कार्य हो रहे हो उनका उत्साह वर्धन करे, फिर देखिये आनंद आपको छोडेगा नही |
कैलाश 'मानव'
Wednesday, August 18, 2010
चकाचौध और भौतिक युग
जिन्होने वाद्य यंत्र को फेका था, वे भी उसकी सुरीली मधुर धुने सुनकर ठहर गये, ओर लौटकर फकीर से वाद्य यंत्र मांगने लगे | फकीर से वाद्य यंत्र मांगने लगे | फकीर ने कहा कि ये तो कुडेदान से मिला ही मुझे | फेकने वालो ने कहा यह हमने हि फेंका था यह हमारा है एवं हमारे परिवार कि पिढीयो कि धरोहर है, फकीर सुनकर खिलखीला उठा ओर पुछा यदि ये आपका है तो फिर क्यो फेंका था इसे कुडेदान मैं ? आप यदि वास्तव मैं इसके मालिक होते तो बजाते इसे वाद्य तो बजाने के लिये हि होता है |
जी हां हमारा जीवन भी इस वाद्य यंत्र है जीससे हम जीवन को मधुर धूने निकाल सकते है, ओर आनंद ले सकते है, सुख का | क्या हम भौतिकता के पीछे भागकर कही मात्र लक्ष्मी बटोरने को हि जीवन नाही मान बैठे है ? क्या किसी अपरिचित बिमार को देखकर कभी हमारे हृदय मैं करुणा उमडी है ? क्या कभी हम अपने पडोसी के दु:ख से दु:खी हुए है ? क्या कभी कडाके कि सर्दी मैं मात्र एक ही चद्दर ओढ्कर फुटपाथ पर रात बिताने वाले बेसहारे कि सर्दी महसूस कि है ? क्या हमने किसी अनाथ बच्चे को दिया है कोई रिश्ता ? यदि इन सब प्रश्नो का उत्तर ना मैं मिल रहा है तो हमारी भी वही हालत है जो उस परिवार कि थी जिसने वाद्य यंत्र को कुडेदान मैं फेंका |
सुबह का भुला हुआ शाम को घर लौट आता है तो उस भुला नही कहते है | जिस मनुष्य योनी के लिये देवता तक लालयित रहते है वह योनी परमात्मा ने हमे दी है कुछ जीवन को सत्कर्मो - सेवाकार्यो मैं लगाये एवं जिस आनंद कि लिये यह जीवन मिला है उस आनंद कि करे अनुभूती |
कैलाश 'मानव'
Friday, August 6, 2010
Narayan Seva Sansthan : A Brief Introduction
The organization has engaged itself in different educational, social and medical services for the poor as well as the needy, especially from the tribal belt. It is maintaining an orphan children hostel and a residential school for the blind, deaf-dumb and mentally retarded children. In order to make them self dependant Sansthan is providing training of sewing, carpentry, bamboo work etc. and also has vocational training centers providing courses on computer servicing, T.V. / V.C.R. repairing etc.
The Sansthan has frequently been organizing service camps to distribute food grains, medicines and basic utility items to poor tribals, pulse polio drive, environmental awareness camps, distribution of aids & appliance as calipers, crutches, tricycle & wheelchair free of cost etc. Besides these it also arranges “Parichay Sammelan” (Introduction Ceremony) for the disabled boys and girls and thereafter organizes and arranges a ceremony to tie their notes and get them married.
Wednesday, August 4, 2010
एक व्यक्ति
" मेरी पत्नी उस समय सो रही थी, एकाएक बच्चा चीखा, तो मुझे लगा - अब पत्नी जग पड़ेगी और मेरा घर से निकलना कठिन हो जायेगा, पर पत्नी ने बच्चे को छाती से लगाया, और बच्चा चुप हो गया | मे चुपचाप निकल आया | महात्मन | अब संसार की मोह-माया मे फंसना नहीं चाहता |"
साधू बोले - " मुर्ख ! दो भगवान तो तेरे घर मे ही बैठे है, जिन्हे तू छोड़ आया | जा जब तक तू उनकी सेवा नहीं करेगा, तब तक तेरा उद्धार नहीं होगा | पहले परिवार को संभाल, अपने कर्तव्यों को पूरा कर, फिर सोचना की पारिवारिक दायित्वों को निवाहते हुए तेरा आत्म कल्याण का लक्ष्य पूरा हुवा या नहीं ? अध्यात्म भगोड़ो का नहीं शूरवीरों का साथ देता है | परिवार मे रहते हुए भी, तेरी साधना पूरी होती रह सकती है | त्याग करना ही है , तो अपने सुखों एवं सुविधओं का कर !
Sunday, August 1, 2010
सृष्टीकर्ता
वह किसान के पास गए, उन्होंने कारण जानना चाहा तो उसका सीधा उत्तर था | महाराज मेरे साथ कैसा अन्याय है? इस पर्वत को अन्यत्र स्थान ही नहीं मिला बादल आते हैं, इससे टकराकर उस और वर्षा कर देते है और पर्वत के इस मेरे खेत है वह सूखे ही रहते हैं |
" क्या तुम इस विशाल पर्वत को हरा सकोगे? क्यों नहीं ? मे इसे हराकर ही मानूंगा वह मेरा दृढ संकल्प है | सृष्टीकर्ता आगे बढ़ गए उन्होंने अपने सामने पर्वत राज को याचना करते देखा | वह हाथ जोड़े गिडगिडा रहा था विधाता! इस संसार मे सिवाय आपके मेरी रक्षा कोई नहीं कर सकता | क्या तुम इतने कायर हो, जो की किसान के परिश्रम से डर रहे हो |
मेरे भयभीत होने के पीछे जो कारण है, क्या आपने अभी-अभी नहीं देखा था की किसान मे कितना आत्मविश्वास मे वहां से मुझे हटाकर ही मानेगा | अगर उसकी इच्छा इस जीवन मे पूरी नहीं हुई तो उसके छोड़े हुए काम को उसके पुत्र और पोत्र पूरा करेंगे और मुझे भूमितल करके ही चैन लेंगे आत्म विश्वास असंभव लगने वाले कार्यो को भी संभव बना देता है | पर्वतराज ने कहा |
आज मानवता कराह रही है - दानवता हंस रही है | समाज मे दुखों का अंत नजर नहीं आ रहा है | आज सूर्य की किरणेहर गर तक पहुँचने मे पूर्ण संभव नहीं है पर वनांचल मे दुखों का अन्धकार का साम्राज्य आज भी मौजूद है | समाज मे व्याप्त दुखों का एक पहाड़ खड़ा है | आपश्री के सहयोग, वरदहस्त एवं संरक्षण से यह संस्थान श्री उसी किसान की तरह दृढ संकल्प एवं आत्म विश्वास के साथ इस पहाड़ को गिराने मे लगा है | कार्य बहुत बाकी है अभी मात्र मंजिल का रास्ता मिला है मंजिल अभी दूर है | हमारा विश्वास प्रबल है, कदम इसी दिशा मे बढ़ रहे है, साथ एवं संबल आपका पुरजोर मिल रहा है तथापि आवश्यकता है अधिक हाथों की | हजारों मन से संकल्प उठने की |
जी हाँ, साथ आपश्री का इसी प्रकार मिलता रहेगा, अगर समाज मे फैली असमानता की खाई को जीन पर्यन्त लगे रहने के बाद भी हम पूरा नहीं कर पायेंगे तो जो आज बालगृह मे बच्चे शिक्षित हो रहे है, जो विधवाएं स्वावलम्बन प्रशिक्षण ले रही है, जो विकलांग ऑपरेशन के बढ़ खड़े होकर होकर चल रहे हैं वे इस कार्य को पूरा करेंगे | अगर इस हेतु पुनः जन्म भी लेने की आवश्यकता रही तो इसी कार्य हेतु जन्म दे, नहीं प्रार्थना प्रभु से निरंतर रहेगी |
प्रभु का कार्य है - प्रभु ही कर रहे है - हम सब तो हैं निमित्त मात्र |
Friday, July 30, 2010
मानवता एवं सेवा
महावीर स्वामी शान्त चित्त से यह सब सुनते रहे, और बोले "ऐसा न कहे तात | ये तो अपने है, बच्चे प्यार से भी तो मुहँ नोचते हैं | माता-पिता क्या इसी बात से उन्हे गोद मे लेने से इंकार कर देते हैं ? आपका धन यहाँ मेरे लिए भवन बनाने मे ही नहीं, वरन निराश्रितों की सेवा में काम आना चाहिए |
धनिकों ने जब यह सुना तो वे अवाक् खड़े रह गए, उन्हे मुह से केवल इतना ही निकला, यही है सच्ची महानता, जो आज देखने को मिली | ग्वालो ने यह सब वृतांत सुना तो वे ग्लानी से भर उठे, उनके मन मे करुणा का अंकुरण हो गया |
आज संतो, महामुनियों से हम भी कई इसी जीवन बदलने वालो बातें रोज सुनते हैं | धन्य हैं वे संत जो समाज के कल्याण के लिए वस्त्र, यातायात के साधन, अहं, मान, अपमान सभी छोड़कर हमारी प्रेरणा बने हुए हैं | नित्य त्याग, सेवा एवं प्रेम का संदेश हमे देते हैं | क्या हमारा धन इसे लोक हित के कार्यो के लिए निकला है? क्या हमने अपनी धन रूपी लक्ष्मी किसी अनाथ की आवश्यकता मे लगे है? क्या हमने कभी दिलवाई है - किसी गरीब को दवा?
यही जीवन का असली मार्ग है - मान्यवर | चलते रहिये इसी पथ पर, जहाँ हमारे पथ प्रेरक दधिची, भामाशाह एवं कर्ण जैसे महादानी चले | मंजिल की रह यही है | आवश्यकता है मंजिल तक पहुँचने के लिए अपनी गति को रोज करने की जिस प्रकार से समाज मे दरिद्रता, आपाधापी व असमानता बढ़ रही है उसके दुगुने अनुपात मे सेवा, त्याग, प्रेम, आत्मीयता, उदारता, एवं स्नेहिलता की आवश्यकता हैं |
आपका आपना,
कैलाश 'मानव'
Thursday, July 29, 2010
Online Presence on Facebook, Orkut & Twitter
Dear Friends,
It feels great to be connected with you all online on websites like Twitter, Orkut and Facebook. I thank all of you who have added me with your profiles. This medium will help me tell you more about the activities of your Sansthan. I am really excited to see here that more and more youngsters are appreciating the activities of Narayan Seva Sansthan.
Since the inception of Narayan Seva Sansthan in 1985, with the contribution of all so many humble people the sansthan has successfully done more than 95000 polio operations. Our efforts and dedication in serving the mankind in all possible ways will carry on like this for ever.
I once again thank you for being a part of the Sansthan in some way or the other. Without your blessings the sansthan would not have traveled this path. Please spread the word about the sansthan if you find anyone in need of help from us.
जय मानव जाती, जय नारायण सेवा !
Your's Truly,
Dr. Kailash 'Manav'
Tuesday, July 27, 2010
सेवा क्यों?
सेवा का उद्दश्य क्या है? दीन - दरिद्र पीड़ित मानव समाज व देश की सेवा किसलिए? सेवा के द्वारा तुम्हारा ह्रदय शुद्ध होता है, अहम् भाव, घ्राणा, उच्चता की भावना एवं बुरी भावनाओ का नाश होता है तथा नम्रता, शुद्दता, प्रेम, सहानभूति तथा दया जैसे गुणों का विकास होता है| सेवा से स्वार्थ भावना मिटती है - द्वैत भावना कम होती है| जीवन के प्रति दृष्टीकोण विशाल एवं उदार होता है, एकता का भाव होता है परिणाम स्वरुप आत्मा का ज्ञान होने लगता है, एक में सब और सब में एक की अनुभूति होने लगती है - तभी असीम सुख प्राप्त होता है |
- स्वामी विवेकानंद
आत्म - वंचना से दूर, सत्य के निकट रहे
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Monday, July 26, 2010
कर्म का भाव
जिसके ह्रदय में यह निष्ठां द्रद्द हो गयी की 'मेरा जीवन मुझ आकेले का नहीं है बल्कि सबके लिए है" तो समझना मानवता जाग उठी, इस मानवता का जिस समाज पद्दति से विकास हो उस समाज रचना की हमें जरूरत है| महा प्रयत्न में भी हमें वह निर्मित करनी चाहिए |
आपका आपना
कैलाश 'मानव'